कहानी संग्रह >> कैरियर गर्लफ्रैंड और विद्रोह कैरियर गर्लफ्रैंड और विद्रोहअनुज
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प्रथम कहानी संग्रह ‘कैरियर, गर्लफ्रैंड और विद्रोह’ से हिन्दी जगत का ध्यान खींच लेने वाले अनुज की कहानी में सब कुछ सवाक् और सजीव है...
वर्तमान समय घटनाओं से घिचपिच इस तरह भरा हुआ
है जिस तरह पिनकुशन में खुँसे आलपिन। इसके साथ लेखक यही सलूक कर सकता है कि अपनी अभिव्यक्ति को सीधी, प्रत्यक्ष और अनावृत कर दे जैसी युवा कहानीकार अनुज की है। अपनी पहली कहानी, ‘कैरियर, गर्लफ्रैंड और
विद्रोह’ से हिन्दी जगत का ध्यान खींच लेने वाले अनुज की कहानी में सब कुछ सवाक् और सजीव है। वे निर्मल वर्मा की तरह चुप्पियों को सुनने के लिए नहीं ठहरते, विनोद कुमार शुक्ल की तरह यथार्थ बुनने का प्रयत्न नहीं करते बल्कि सीधे
अपने विश्वविद्यालय परिसर में हमें ले चलते हैं जहाँ वामपन्थी और
दक्षिणपन्थी छात्र-समूहों का कोलाहल छात्रसंघ के चुनावों में उभर कर आता
है, अधिसंख्य छात्रों की चेतना गर्लफ्रैंड, ब्वॉयफ्रैंड और कैरियर तक
सीमित है। दिक़्क़त ‘विद्रोही’ जैसे इन थोड़े से
विद्यार्थियों की है जो आसपास के क़स्बों से इस राष्ट्रीय परिसर में अपना
भविष्य सँवारने के लिए आते हैं और अन्ततः अपना कैरियर बरबाद कर बैठते हैं।
उसी परिसर के पत्थरों पर वे मृत पाए जाते हैं। विश्वविद्यालय परिसर में
ऐसी दारुण परिणति जब-जब घटित होती है, एक नयी यादगार कहानी दे जाती है।
कुछ वर्ष पहले उदय प्रकाश की कहानी ‘रामसजीवन की प्रेम कथा’
में भी इसी तरह का पात्र मौजूद था।
अनुज की कहानी की विशेषता यह है कि इसमें मुख्य पात्र की परिस्थिति व परिणति के प्रति न उपहास है न उच्छ्वास, मात्र वृत्तान्त है। पाठक अपनी तरह से क्रियायित होने को स्वतन्त्र है। बात सिर्फ़ एक शैक्षिक परिसर की नहीं है। किसी भी शैक्षिक संस्था में प्रतिभाशाली छात्र को विसंगतियों में फँसा कर आभाहीन कर डालने की आशंका उपस्थित रहती है। स्पर्धा और प्रतियोगिता का संसार अग्रगामी नहीं वक्रगामी होता है। ‘भाई जी’ कहानी से एक नये कोण से राजनीतिक ध्रुवीकरण के तहत प्रतिक्रियावादी तत्त्वों की कारगुज़ारियों का बयान है। ‘अनवर भाई नहीं रहे’, ‘कुंडली’, ‘बनकटा’, ‘खूँटा’ कहानियों में अलग-अलग कथा-स्थितियाँ हैं किन्तु कहीं भी लेखक का हस्तक्षेप नहीं है। अनुज की यह तटस्थ शैली उन युवा रचनाकारों से नितान्त भिन्न है जो लेखक के साथ निर्देशक भी बन कर पाठक को शिक्षित करते चलते हैं। इसीलिए अनुज की कहानियों में विविधता बनी रहती है और विश्वसनीयता भी।
जहाँ बाकी कहानियाँ शहरी यथार्थ से ताल्लुक रखती हैं, ‘खूँटा’ कहानी का ग्रामीण यथार्थ नयी कथावस्तु के साथ नयी शब्दावली भी प्रस्तुत करता है। बैल बिकने की प्रक्रिया में ग्राम समाज में व्याप्त विभिन्न स्वभाव और प्रवृत्तियाँ उजागर होती चलती हैं। बागमती के कछार पर लगे पशु-मेले में बैलों के खुरों से इतनी धूल उड़ती है कि लगता है ‘जैसे बैल-धूलि की बेला हो।’ मेले में एक तरफ बैलों का मोल-भाव होता है तो दूसरी तरफ स्त्री देह का। दोनों महाजनी सभ्यता के शिकार हैं।
अनुज अपनी हर कहानी के लिए अलग भाषा-विन्यास रचते हैं। दफ़्तरों में पनपती शाब्दिक हिंसा, पड़ोस में बढ़ती अजनबीयत, घरों में उगती समस्याएँ, जीवन का जटिलताएँ - इन सबके लिए अनुज के पास कोई जादुई भाषा की बाज़ीगरी नहीं है। वे बिना वाचाल हुए गहन, सघन, गम्भीर, व्यंग्यात्मक और संगत-विसंगत का तालमेल बैठाते हुए अपनी कथाजगत निर्मित करते हैं।
अनुज की कहानी की विशेषता यह है कि इसमें मुख्य पात्र की परिस्थिति व परिणति के प्रति न उपहास है न उच्छ्वास, मात्र वृत्तान्त है। पाठक अपनी तरह से क्रियायित होने को स्वतन्त्र है। बात सिर्फ़ एक शैक्षिक परिसर की नहीं है। किसी भी शैक्षिक संस्था में प्रतिभाशाली छात्र को विसंगतियों में फँसा कर आभाहीन कर डालने की आशंका उपस्थित रहती है। स्पर्धा और प्रतियोगिता का संसार अग्रगामी नहीं वक्रगामी होता है। ‘भाई जी’ कहानी से एक नये कोण से राजनीतिक ध्रुवीकरण के तहत प्रतिक्रियावादी तत्त्वों की कारगुज़ारियों का बयान है। ‘अनवर भाई नहीं रहे’, ‘कुंडली’, ‘बनकटा’, ‘खूँटा’ कहानियों में अलग-अलग कथा-स्थितियाँ हैं किन्तु कहीं भी लेखक का हस्तक्षेप नहीं है। अनुज की यह तटस्थ शैली उन युवा रचनाकारों से नितान्त भिन्न है जो लेखक के साथ निर्देशक भी बन कर पाठक को शिक्षित करते चलते हैं। इसीलिए अनुज की कहानियों में विविधता बनी रहती है और विश्वसनीयता भी।
जहाँ बाकी कहानियाँ शहरी यथार्थ से ताल्लुक रखती हैं, ‘खूँटा’ कहानी का ग्रामीण यथार्थ नयी कथावस्तु के साथ नयी शब्दावली भी प्रस्तुत करता है। बैल बिकने की प्रक्रिया में ग्राम समाज में व्याप्त विभिन्न स्वभाव और प्रवृत्तियाँ उजागर होती चलती हैं। बागमती के कछार पर लगे पशु-मेले में बैलों के खुरों से इतनी धूल उड़ती है कि लगता है ‘जैसे बैल-धूलि की बेला हो।’ मेले में एक तरफ बैलों का मोल-भाव होता है तो दूसरी तरफ स्त्री देह का। दोनों महाजनी सभ्यता के शिकार हैं।
अनुज अपनी हर कहानी के लिए अलग भाषा-विन्यास रचते हैं। दफ़्तरों में पनपती शाब्दिक हिंसा, पड़ोस में बढ़ती अजनबीयत, घरों में उगती समस्याएँ, जीवन का जटिलताएँ - इन सबके लिए अनुज के पास कोई जादुई भाषा की बाज़ीगरी नहीं है। वे बिना वाचाल हुए गहन, सघन, गम्भीर, व्यंग्यात्मक और संगत-विसंगत का तालमेल बैठाते हुए अपनी कथाजगत निर्मित करते हैं।
अनुज
जन्म : मोतिहार (बिहार)।
शिक्षा : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से स्नातकोत्तर के पश्चात, ‘टेलीविजन की प्रस्तुति-कला’ विषय पर पी-एच. डी., सूचना प्रौद्योगिकी और प्रबन्धन में एडवांस डिप्लोमा।
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर लेख और पुस्तक समीक्षाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा के लिए बहुतेरे रूपकों (फीचर) का निर्माण और टॉक-लेखन। पहला कहानी संग्रह ‘कैरियर, गर्लफ्रैंड और विद्रोह’।
सम्पर्क : सम्पादक, राज्य-सभा, भारतीय संसद, संसदीय सौंध, नयी दिल्ली-110001।
शिक्षा : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से स्नातकोत्तर के पश्चात, ‘टेलीविजन की प्रस्तुति-कला’ विषय पर पी-एच. डी., सूचना प्रौद्योगिकी और प्रबन्धन में एडवांस डिप्लोमा।
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर लेख और पुस्तक समीक्षाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा के लिए बहुतेरे रूपकों (फीचर) का निर्माण और टॉक-लेखन। पहला कहानी संग्रह ‘कैरियर, गर्लफ्रैंड और विद्रोह’।
सम्पर्क : सम्पादक, राज्य-सभा, भारतीय संसद, संसदीय सौंध, नयी दिल्ली-110001।
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